गौत्र के बारे मे कुछ बाते जाने
गौत्र शब्द का अर्थ होता है वंश/कुल
गोत्र प्रणाली का मुख्या उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके मूल प्राचीनतम व्यक्ति से जोड़ना है उदहारण के लिए यदि को व्यक्ति कहे की उसका गोत्र भरद्वाज है तो इसका अभिप्राय यह है की उसकी पीडी वैदिक ऋषि भरद्वाज से प्रारंभ होती है या ऐसा समझ लीजिये की वह व्यक्ति ऋषि भरद्वाज की पीढ़ी में जन्मा है ।
ऋषियों की संख्या लाख-करोड़ होने के कारण गौत्रों की संख्या भी लाख-करोड़ मानी जाती है, परंतु सामान्यतः आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गौत्र ऋषि माने जाते हैं, जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गौत्र बनाए गए। ‘महाभारत’ के शांतिपर्व (297/17-18) में मूल चार गौत्र बताए गए हैं
आठ गौत्र ऋषि
अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि जैन ग्रंथों में 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ। इनमें हर एक के अलग-अलग भेद बताए गए हैं जैसे कौशिक-कौशिक कात्यायन, दर्भ कात्यायन, वल्कलिन, पाक्षिण, लोधाक्ष, लोहितायन (दिव्यावदन-331-12,14)
ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए।
वैदिक पुराणों के अनुसार एक ही गौत्र में विवाह करना प्रतिबंधित है, एक ही गौत्र से होने के कारण वह पुरुष और स्त्री भाई-बहन कहलाते है क्योंकि उनके पूर्वज एक ही होते हैं।
गौत्र जन्मना प्राप्त नहीं होता, इसलिए विवाह के पश्चात कन्या का गौत्र बदल जाता है और उसके लिए उसके पति का गौत्र लागू हो जाता है।
अलग गौत्र में विवाह नहीं करने वाले वर और कन्या के दुष्ट बच्चों की उत्पत्ति की बात कही गयी है –
सभी समुदायों में गौत्रो की संख्या अलग अलग है मुख्यतः तीन गौत्रो को छोड़ कर विवाह किया जाता है पहला तो स्वयं का गौत्र, दुसरा माँ का गौत्र और तीसरा दादी का गौत्र |
विज्ञान और वेद दोनो से स्पष्ट है कि अधिक दूरी पर विवाह अच्छे होते हैं. सन्तान मे माता और पिता दोनो के जीन समान रूप से आते हैं. और सातवीं पीढी के बाद की संतानो मे माता पिता के जीन नहीं के बराबर रह जाते हैं. उपर यह भी बताया गया है कि मां और दादी के गोत्र भी देखना चाहिये(वैज्ञानिक द्रष्टि से भी)
हमारी धार्मिक परम्पराओं के अनुसार एक ही गौत्र में विवाह करना उचित नहीं माना गया है क्योंकि ऐसा करने वालो की संतान दोष पूर्ण होती है |
गौत्र किसी समाज की उन प्रव्रतियों व मानव जीवन और समाज के समूह रूप व्यापार स्थान के परिचालक है। जिनसे समाज के उस समूह का बोध होता है । यद्यपि कालान्तर मे कमाज की के साथ- साथ इसके रूप देने के लिऐ गौत्र एक सूत्र का काम करता है। और आजकल तो यह भी प्रथा प्रचालित हो गई कि व्यक्ति अपने नाम के आगे अपना उपनाम का उल्लेख भी करते है। अपने-अपने गौत्रों की कुल माताऐं अलग-अलग होती है। जिनके पूजन का बच्चे के जन्म से विवाह तक बहुत महत्व होता है। हमारे 72 गौत्रों में 37 भिन्न-भिन्न माताऐं है। जिनमे जीणमाता 13 गौत्रों की सुखण्ड अ भभूरो 7-7 गौत्रों में पूजक है। हर साल अश्रिवन की नवरात्रि मे अष्टमी के दिन इन देवियों का प्रेत्यक घर मे पूजन का विद्यान है। इसके अतिरिक्त यद्यति मुण्डन भी कुल देवी के समक्ष ही होने का विधान हैं। लेकिन दुरी व बदलती हुई परिस्थितियों के कारण आजकल इसका कठिनता से पालन होना सम्भव नहीं रहा है। फिर भी इस देवियों का पूजन बडी श्रद्वा व पवित्रता से किया जाता ह। धार्मिक कत्यों मे इसका सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है। विवाह मानव के जीवन का सबसे महत्पूर्ण संस्कार ह। तथा इस संस्कार के लिये भी गौत्र का बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चे व बच्ची का विवाह उनके परिवार के गौत्र टालकर ही करने का विधान है। (समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए)।
ओशो का कथन है कि स्त्री-पुरुष जितनी अधिक दूरी पर विवाह करते हैं उनकी संतान उतनी ही अधिक प्रतिभाशाली और गुणी होती है। उनमें आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएं कम से कम होती हैं। उनके गुणसूत्र बहुत मजबूत होते हैं और वे जीवन-संघर्ष में परिस्थितियों का दृढ़ता के साथ मुकाबला करते हैं।
विवाह निश्चित करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
विवाह दो आत्माओं के मिलन के साथ-साथ दो परिवारों का भी मिलन होता है १ विवाह प्राचीन कल से एक पवित्र संस्कार माना गया है १ विवाह के बाद घर में सुख समृधि आये, परिवार में वृद्धि हो, भावी दम्पति का वैवाहिक जीवन दीर्घकालीन हो, इसके लिए विवाह निश्चित करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए :-
वधु के गोत्र, वर के गोत्र और वर की माता के गोत्र की तीन पीढ़ियों में से न हो १
दो सगे भाइयों का विवाह, दो सगी बहनों से ना करें १
विवाह के बाद छ: महीने तक कोई मंगल कार्य ना करें १ अगर माघ महीने में मंगल कार्य हो तो चैत्र महीने में दूसरा मगल कार्य कर सकते हैं
ज्येष्ठ पुत्र का विवाह जयेष्ठ पुत्री के साथ ज्येष्ठ मास में कदापि नहीं करना चाहिये १
पुत्र-वधु के घर में प्रवेश के बाद छ: महीने से पहले कन्या की विदाई नहीं करनी चाहिए १
गुर, शुक्र अस्त चल रहें हों, मल मास चल रहा हो तो विवाह करना वर्जित है १
जब सूर्य अपनी नीच राशी में चल रहा हो तो भी विवाह टालना चाहिए १
जन्म पत्री मिलान शास्त्रीय विधि से करना चाहिए १
वर-वधु की महादशा की संधियों में किया गया विवाह जीवन में गंभीर परेशानियाँ लेकर आता है अत: इसका ध्यान रखना चाहिए १
नक्षत्र के आरम्भ और अंत में विवाह न करें १
गुरु सिंह राशी में गोचर कर रहा हो तो भी विवाह न करें १
लड़का-लड़की दोनों विवाह योग्य हों तो लड़की का विवाह पहले करें १
दो सगे बहन भाई के विवाह में कम से कम छ: महीने का अन्तराल हो १
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