महाशिवरात्रि
जिस शिवरात्री पर्व के आगमन क़ी प्रतीक्षा मानव ही नहीं बल्कि देव दानव सभी बहुत उत्सुकता से करते है. जिस महापर्व शिवरात्रि के आगमन क़ी आश लगाए धरित्री धैर्य पूर्वक जड़ जंगम एवं स्थावर के प्रत्येक शुभ एवं अशुभ कर्मो क़ी साक्षी बन वर्षपर्यंत उन्हें धारण किये रहती है. जिस महिमामय मुहूर्त के आगमन मात्र से समस्त चराचर में एक नयी स्फूर्ति एवं आशा क़ी उमंग जगती है. जिसके आगमन के पूर्व शीतोष्ण निशामुख समीर के साथ घुलकर आती हुई शिवरात्रि क़ी भीनी भीनी मीठी सुगंध के स्पर्श मात्र से ऋतुराज वसंत उमंग भरी अंगडाई लेने लगता है.
“ॐ ईशानो गिरीशो मृडः पशुपतिः शूली शिवः शंकरो.
भूतेशो प्रमथाधिपो स्मरहरो मृत्युंजयो धूर्जटिः.
श्रीकन्ठो वृषभध्वजों ह़रभवो गंगाधरस्त्रयम्बकह.
श्री रुद्रः सुर वृन्द वन्दित पदः कुर्यात सदा मंगलम.”
कुछ लोग कहते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था. इसीलिए शिवरात्री मनाई जाती है. कुछ लोग कहते है कि इसी दिन भगवान शिव का अवतार हुआ था इस लिये शिवरात्री मनाई जाती है. विविध कथाओं का उल्लेख मिलता है. किन्तु जो प्रामाणिक कारण है वह निम्न प्रकार है.
यह ठीक है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था. किन्तु पार्वती का अवतार तों सती के देह त्याग के बाद हुआ था. किन्तु शिवरात्री तों उसके बहुत पहले से मनाई जाती रही है. क्योकि शिवरात्री के दिन ही जब मेनका पुत्री पार्वती ने भगवान शिव का अभिषेक कर भगवान शिव से यह आशीर्वाद पाया था कि उनकी शादी भगवान शिव से ही होगी. तों भगवान शिव ने यह आशीर्वाद दिया कि पार्वती क़ी शादी उनके ही साथ होगी. इस प्रकार शिव के विवाह से पहले से ही शिव रात्रि मनाने का विधान है.
शिवरात्री व्रत का महत्व
भगवान शंकर को चतुर्दशी तिथि विशेष प्रिय है ।
प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की अर्धरात्री व्यापिनी चतुर्शी भगवान शंकर शिव का सान्निध प्रदान करने वाली होती है । चूंकि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अर्धरात्री में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था , इसलिए फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्री महाशिवरात्रि मानी जाती है । महाशिरात्रि के दिन व्रत करके रात्रि में शिवपूजन करने से सब पापों से छुटकारा मिल जाता है तथा भुक्ती व मुक्ति की प्राप्ति होती है । इस व्रत को सभी वर्ण के स्त्री – पुरूष व बाल –युवा – वृद्ध सभी कर सकते है ।
महाशिवरात्रि की रात्रि में सर्वव्यापी भगवान शिव संपूर्ण चल व अचल शिवलिंगों में संक्रमण करते है । एक समय संपूर्ण देवताओं ने सब लोकों पर अनुग्रह करने की इच्छा से भगवान शंकर से प्रार्थना की – ‘भगवान ! समस्त पापों से भरे हुए इस कलिकाल में कोई एक दिन ऐसा बताइए , जो वर्षभर के पापों की शुद्धि कर सके । जिस दिन आपकी पूजा करके मनुष्य सब पापों से शुद्ध हो सके , क्योकि कलिकाल में अशुद्ध मनुष्यों के द्वारा दी हुई कोई भी वस्तु हमें नहीं मिल पाती है ।“ देवताओं की प्रार्थना पर भगवान पर शिव ने कहा –फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात के समय मनुष्यों के वर्ष भर के पापों को शुद्ध करने के लिए भूतल के समस्त चल –अचल शिवलिंगों में मै संक्रमण करूंगा । जो मनुष्य उस रात में निम्न मंत्रों द्वारा मेरी पूजा करेगा , वह पापरहित हो जाएगा ।“
* मंत्र-ऊँ सघोजाताय नम: ।
* ऊँ वामदेवाय नम: ।
* ऊँ अघोराय नम: ।
* ऊँ ईशानाथ नम: ।
* ऊँ तत्पुरूषाय नम: ।
इन पांचों मंत्रों से गंध , पुष्प , चंदन ,धूप –दीप व लैवेघ द्वारा मेरे पांच मुखों का पूजन करके मन ही मन मेरा ध्यान करते हुए जो मुझे अर्घय प्रदान करेगा – वस्त्र आदि के द्वारा ब्राह्माण का पूजन करेगा व उसे दक्षिणा देगा तथा मंदिर में बैठकर धार्मिक उपाख्यान , कथा और शिव महिमा सुनेगा , उसके सब पापों की शुद्धि हो जाएगी ।
इसके बाद मुनिश्रेष्ठ देवर्षि नारदजी ने भूतल पर पधारकर सब ओर सब लोगों को महाशिवरात्रि की महिमा सुनाई तथा सब लोगों को अपने लिए एश्वर्य व कल्याण की प्राप्ति के लिए प्रयत्नपूर्वक शिवरात्रि का व्रत करने का उपदेश दिया । नारदजी ने कहा – ‘गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है , महादेवजी के समान दूसरा देवता नहीं है तथा शिवरात्रि के व्रत से बढकर दूसरा कोई तप नहीं है । जौसे मेरू सब रत्नों से भरा है तथा आकाश सब आश्चर्यों से परिपूर्ण है , इसी प्रकार शिवरात्रि सर्वधर्ममयी है । जैसे पक्षियों में गरूड तथा जलाश्यों में समुद्र श्रेष्ठ है , वैसे ही सब धर्मों में शिवरात्रि उत्तम है ।
सौ करोड जन्मों में उतपन्न हुई पुण्य राशि के प्रभाव से ही मनुष्य को भगवान शमकर की विल्वपत्र , मदार , लालकमल , धतूरा , कनेर , कुशा , तुलती , जूही , चंपा , सनेई , चमेतली व करवीर के फूलों से पूजा करने का अवसर प्राप्त होता है । इस दिन शिवलिंग के विधिपूर्वक पूजन से प्राप्त पुण्य की समता तो तीनों लोकों में भी किसी से नही हो सकती ।जो मनुष्य महाशिवरात्रि को उपवास करके भघवान शिव की भक्तिपूर्वक पूजा करता है , वह परमगति को प्राप्त होता है ।